क्या आप भी मनाएंगे eco-friendly होली ?
"नेहा, तुम होली खेल सकती हो"| माँ ने जैसे ही कहा, तो नेहा चहक उठी, "थैंक यू मम्मी"! तभी नेहा के पिता आशीष ने, नेहा की माँ वसुधा से कहा, तुम समझती क्यों नहीं, नेहा की एग्जाम है, कैसे कैसे वायरस फ़ैल रहे हैं, और आज कल कैसे कैसे केमिकल्स बाजार में आ रहे हैं, रंगों के नाम पर, अगर नेहा बीमार हो गई तो?
"आपकी इस प्रॉब्लम का सोल्युशन मै निकाल चुकी हूँ," वसुधा मुस्कुराते हुए बोली|
कॉलोनी के लगभग सभी बच्चों की परीक्षा या तो चल रही है, या शुरू होने वाली है, इसलिए सभी को बाजार से रंग लाने के लिए मना कर दिया है|
नेहा की स्कूल टीचर ने ही ये आईडिया दिया है, कि हम सभी, बच्चों के साथ घर में ही होली के रंग बनाएँगे|
हल्दी, बेसन, फूलों के सूखे पत्ते, चुकंदर पीसकर, और नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर वह पानी बच्चों को देंगे, अब जब बच्चे नीम के गुनगुने पानी से खेलेंगे तो वो एंटी बायोटिक का काम करेगा, और ये सारी चीज़ें उबटन का काम करेंगी. सभी बच्चों के लिए 1 घंटे का समय निश्चित कर दिया है. वे सभी सुबह ९ बजकर ३० मिनट पर गार्डन में इकठ्ठे होंगे, और एक दूसरे को सबसे पहले गुलाल का टीका लगाकर होली की शुभकामनायें देंगे और इसके बाद प्राकृतिक चीज़ों से बने रंग एक दूसरे को लगाएंगे. इस तरह वे होली के पर्व पर आनंद भी ले सकेंगे और बीमारी का भी कोई डर नहीं होगा|
"लेकिन इतना सारा नीम का पानी उबलेगा कौन?" राजेश ने पूछा. तो वसुधा बोली, पानी को भी व्यर्थ थोड़े ही बहाना है, इसलिए हमने सभी बच्चों से कहा है, कि कम से कम पानी गार्डन में लाएं, और घर में अपने नहाने के लिए भी नीम का पानी तैयार रखें|
"ये तो बहुत अच्छा आईडिया है, न तो बच्चों की होली के रंग में भंग पड़ेगा, और न ही किसी बीमारी की आशंका ही होगी| बहुत अच्छे| " आशीष ने निश्चिन्त होकर कहा|
दूसरे दिन सभी बच्चे तय समय पर गार्डन में इकट्ठे हुए, और एक दूसरे को होली की शुभकामनायें दी. इसके बाद एक दूसरे को अपने हाथों से बनाये प्राकृतिक रंग लगाते हुए उनका आनंद देखते ही बनता था, सभी एक दूसरे को बता रहे थे, कि रंग कैसे घर के सदस्यों के साथ मिलकर बनाया है|
इसके बाद सभी बच्चे अपने घर चले गए, थोड़ी देर में वहां चिड़ियाँ आकर वहां जमा कुछ पानी पीने लगी, तो मन को अपार संतोष मिला, कि अपने उत्सव के लिए किसी ने न जल प्रदूषित किया और न ही वायु|
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धन्यवाद |
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