देशभक्तों की व्यथा
तात्कालिक राजनेताओं के खेल के कारण कितने देशभक्त लोगों ने अत्यंत प्रतिभावान होते हुए भी भयंकर दरिद्रता और दुःख में जीवन बिताया, मुंशी प्रेमचंद इसका जीता जागता उदहारण हैं.वे तात्कालिक भारत का सजीव चित्रण अपनी कहानियों के माध्यम से करते थे.
देशभक्ति के लेख लिखने के कारण फिरंगियों ने उनके साहित्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, तब उन्हें अपना नाम "धनपत राय" से बदल कर मुंशी प्रेमचंद रखना पड़ा.
अत्यंत गरीबी में उन्होंने जीवन बिताया. इलाज के पैसे न होने के कारण वे ५६ वर्ष की अल्प आयु में ही
वे काल के गाल में समा गए.
वहीँ खुद को भारतीयों का प्रतिनिधि बताने वाली, फिरंगियों की चापलूस ब्रिगेड, का एक सदस्य, रविंद्र नाथ टैगोर, जिसने ब्रिटिश शासकों के लिए "जन गण मन" गीत लिखा, नोबल साहित्य पुरस्कार विजेता बना.
सभी देश प्रेमी भारतीय चाहते थे, कि श्री बंकिम चंद्र चटोपाध्याय के गीत "वन्दे मातरम" को राष्ट्र गीत बनाया जाये, संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाया जाये, देश के बटवारे को रोका जाये, परन्तु धूर्त नेहरू ने देश प्रेमियों की एक न चलने दी. यहाँ तक कि शिक्षा से धर्म का नाता ही तुड़वा दिया. नतीजा, आज पढ़े लिखे अधिकांश युवक युवती, नैतिक मूल्यों से अनभिज्ञ हैं, और जाने अनजाने पतन के मार्ग पर अग्रसर हैं.
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